Wednesday, 10 September 2014

GEETA AMRIT



न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या- द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् । अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं- राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥
भावार्थ : क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके॥8॥

No comments:

Post a Comment