GEETA AMRIT
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या- द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् । अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं- राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥
भावार्थ
: क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के
स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी
इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके॥8॥
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