GEETA AMRIT
श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।
भावार्थ
: श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से
प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग
को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है॥2॥
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