Monday, 8 September 2014

क्यों डरे की ज़िन्दगी मैं क्या होगा, हर वक़्त क्यों सोचे की बुरा होगा,
बढ़ते रहे मंज़िलों की ओर हम कुछ न भी मिला तो क्या ?
तजुर्बा तो नया होगा।

No comments:

Post a Comment