Wednesday, 10 September 2014

GEETA AMRIT

 अर्जुन उवाच दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ॥ सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति । वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते ॥
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है॥28वें का उत्तरार्ध और 29॥

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