बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥
भावार्थ
: समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है
अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व
रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है॥50॥
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