व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन । बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥
भावार्थ
: हे अर्जुन! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है, किन्तु
अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत
भेदों वाली और अनन्त होती हैं॥41॥
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