Wednesday, 10 September 2014

GEETA AMRIT

 

 
यनेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते । स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥

भावार्थ : इस कर्मयोग में आरंभ का अर्थात बीज का नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म-मृत्यु रूप महान भय से रक्षा कर लेता है॥40॥

No comments:

Post a Comment