यनेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते । स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥
भावार्थ
: इस कर्मयोग में आरंभ का अर्थात बीज का नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी
नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म-मृत्यु रूप
महान भय से रक्षा कर लेता है॥40॥
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