Wednesday, 10 September 2014

GEETA AMRIT

 
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्žग्रामं न करिष्यसि । ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥

भावार्थ : किन्तु यदि तू इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा ॥33॥

 

 

No comments:

Post a Comment